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Shab e Juma Ka Durood Sharif with Fazilat

Shab e Juma Ka Durood Sharif with Fazilat

 

 

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख़्स हर शबे जुमा (जुमा और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढ़ेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और क़ब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक कि वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथों से उतार रहे हैं

⭐بِسْــــــــــــــــــمِ ﷲِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِنَا وَمَوْلٰنَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاہِ ُوَعَلٰی اٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ وَسَلّـِم

 

【एक हज़ार दिन की नेकियां】

फरमाने मुस्तफा ﷺ: इसको पढ़ने वाले के लिये सत्तर फ़रिश्ते एक हज़ार दीन तक नेकियां लिखते है।

جٙزٙى اللّٰهُ عٙنّٙا مُحٙمّٙدًا مٙاهُوٙاٙهْلُهُ

✍🏽مجمع الزوائد

✨सारे गुनाह मुआफ़
हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स जुमा के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार

اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ

पढ़े उस के गुनाह बख़्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हों।

📗(अलमुजमुल अवसत लित्तिब्रनि, 5/392, हदीस:7717)
📗(फैज़ाने जुमा, 17)

✨हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्ख़ा
गराइबुल क़ुरआन पर एक रिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख़्स रात में इसे 3 मरतबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
(खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं, अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है।)
══════✬∘◦❁◦∘✬══════

👉🏻जुम्मा के दिन रूहों का घर आना👇🏻
हजरत शाह अब्दुल हक मुहद्दिस नक्ल करते है की-
बाज रिवायतो मे आया है की मय्यत की रुह शबे जुमा को अपने घर आती है और देखती है की उसकी तरफ से कोई सदका करता है या नही….
📓फतावा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652
मोमीन की रुह हर शबे जुमा, ईद के दिन, आशुरह के दिन, और शबे बरात, अपने घर आकर बाहर खड़ी होती है और हर रुह गमनाक बुलन्द अवाज से निदा करती है की ऐ मेरे घर वालो ऐ मेरे औलाद ऐ मेरे रिश्तेदारो सदका करके हम पे मेहरबानी करो।
📓कशफुल गैब बाब : अहकामे दुआ सफा-66
📓फत्वा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652
कम से कम जुमा के दिन अपने घर इन्तेकाल कर चुके घरवालो को इसाले सवाब जरुर कर दिया करे। क्योंकी हम जो पढ़कर या करके इसाले सवाब करेंगे वो उनको पहुंचेगा जिससे उनको फायदा हासिल होगा।
अगर वो मय्यत गुनाहगार थी तो गुनाह माफ होंगे और नेकियां मिलेगी और मय्यत नेक थी तो उसके जन्नत मे दर्जे बुलन्द होंगे।
جزاك الله خيرا

 

 

 

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख़्स हर शबे जुमा (जुमा और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढ़ेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और क़ब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक कि वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथों से उतार रहे हैं

⭐بِسْــــــــــــــــــمِ ﷲِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِنَا وَمَوْلٰنَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاہِ ُوَعَلٰی اٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ وَسَلّـِم

 

【एक हज़ार दिन की नेकियां】

फरमाने मुस्तफा ﷺ: इसको पढ़ने वाले के लिये सत्तर फ़रिश्ते एक हज़ार दीन तक नेकियां लिखते है।

جٙزٙى اللّٰهُ عٙنّٙا مُحٙمّٙدًا مٙاهُوٙاٙهْلُهُ

✍🏽مجمع الزوائد

✨सारे गुनाह मुआफ़
हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स जुमा के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार

اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ

पढ़े उस के गुनाह बख़्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हों।

📗(अलमुजमुल अवसत लित्तिब्रनि, 5/392, हदीस:7717)
📗(फैज़ाने जुमा, 17)

✨हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्ख़ा
गराइबुल क़ुरआन पर एक रिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख़्स रात में इसे 3 मरतबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
(खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं, अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है।)
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👉🏻जुम्मा के दिन रूहों का घर आना👇🏻
हजरत शाह अब्दुल हक मुहद्दिस नक्ल करते है की-
बाज रिवायतो मे आया है की मय्यत की रुह शबे जुमा को अपने घर आती है और देखती है की उसकी तरफ से कोई सदका करता है या नही….
📓फतावा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652
मोमीन की रुह हर शबे जुमा, ईद के दिन, आशुरह के दिन, और शबे बरात, अपने घर आकर बाहर खड़ी होती है और हर रुह गमनाक बुलन्द अवाज से निदा करती है की ऐ मेरे घर वालो ऐ मेरे औलाद ऐ मेरे रिश्तेदारो सदका करके हम पे मेहरबानी करो।
📓कशफुल गैब बाब : अहकामे दुआ सफा-66
📓फत्वा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652
कम से कम जुमा के दिन अपने घर इन्तेकाल कर चुके घरवालो को इसाले सवाब जरुर कर दिया करे। क्योंकी हम जो पढ़कर या करके इसाले सवाब करेंगे वो उनको पहुंचेगा जिससे उनको फायदा हासिल होगा।
अगर वो मय्यत गुनाहगार थी तो गुनाह माफ होंगे और नेकियां मिलेगी और मय्यत नेक थी तो उसके जन्नत मे दर्जे बुलन्द होंगे।
جزاك الله خيرا
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ख्वाजा गरीब नवाज ने फरमाया

1)👉 जो बन्दा रात को बा तहारत सोता है, तो फ़िरिश्ते गवाह रहते हैं और सुब्ह अल्लाह عزوجل से अर्ज करते हैं ऐ अल्लाह عزوجل इसे बख्श दे यह बा तहारत सोया था।)

2)👉 नमाज़ एक राज की बात है जो बन्दा अपने परवर दगार से कहता है, चुनान्चे, हदीसे पाक में आया है । :إِنَّ الْمُصَلَّى يُتَابِئ تَبَه” या’नी नमाज़ पढ़ने वाला अपने परवर दगार से राज की बात कहता है ।

3)👉 जो शख्स झूटी कसम खाता है वह अपने घर को वीरान करता है और उस के घर से खैरो बरकत उठ जाती है।

4)👉 मुसीबत जदा लोगों फरियाद सुनना और उन का साथ देना हाजत मन्दों की हाजत रवाई करना,भूकों को खाना खिलाना, असीरों को कैद से छुड़ाना येह बातें अल्लाह عزوجل,के नज़दीक बड़ा मर्तबा रखती हैं

5)👉 नेकों की सोहबत नेक काम से बेहतर और बुरे लोगों की सोहबत बदी करने से भी बदतर है।

6)👉 बद बख्ती की अलामत यह है कि इन्सान गुनाह करने के बा वुजूद भी अल्लाह عزوجل की बारगाह में खुद को मक्बूल समझे।

7)👉 खुदा का दोस्त वोह है जिस में येह तीन खूबियां हों : सखावत दरया जैसी, शफकत आफ़ताब की तरह और तवाज़ो जमीन की ‘मानिन्द !

📚 [ हश्त बिहिश्त, स.75,77,84 ]
📚 [ मुईनुल हिन्द हज़रते ख्वाजा मुईनुद्दीन अजमेरी स. 124 ]
📚 [ फैजाने गरीब नवाज पेज नं 18-19 ]

 

 

नबी ए पाक ﷺ ने फरमाया 👇

🌷नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जो शख़्स अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो उसे अपने मेहमान की इज़्ज़त करना चाहीए।
उसकी ख़ातिरदारी बस एक दिन और रात की है,
मेहमानी तीन दिन और रातों की,
उसके बाद जो हो वो सदक़ा है और मेहमान के लिए जायज़ नहीं की वो अपने मेज़बान के पास इतने दिन ठहर जाये की उसे तंग कर डाले।

📚 बुखारी शरीफ हदीस न. 6135

 

 

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
🌹कब्रिस्तान में अगरबत्ती जला कैसा है?🌹

क़ब्र के ऊपर अगरबत्ती न जलाई जाए इस में बे अदबी और बद फाली है (और इस से मैयत को तकलीफ होती है), हा अगर हाज़रिन को खुशबु पहुंचाने के लिये लगाना चाहे तो क़ब्र के पास खाली जगह हो वहा लगाए के खुशबु पहुंचाने महबूब है।
✍🏽मूलख्खसन फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.482,525

आला हज़रत अलैरहमा एक और जगह फरमाते है : सहीह मुस्लिम शरीफ में हज़रते अम्र बिन आस से मरवी, उन्हों ने दमे मर्ग (यानि वक़्ते वफ़ात) अपने फ़रज़न्द से फ़रमाया : जब में मर जाउ तो मेरे साथ न कोई नौहा करने वाली जाए न आग जाए।
✍🏽सहीह मुस्लिम, स.70 हदिष:192
क़ब्र पर चराग या मोमबत्ती वग़ैरा न रखे के ये आग है, और क़ब्र पर आग रखने से मैय्यत को तकलीफ होती है,
✍🏽आक़ा का महीना, स.29

 

 

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
🌹अजीब वाकिया🌹

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बयान फरमाते हैं:-
भागलपुर से एक साहब हर साल अजमेर शरीफ हाजिर हुआ करते थे उस की एक वहाबी रईस से मुलाक़ात थी।
उसने कहा मियाँ ! हर साल कहाँ जाते हो। बेकार इतना रूप्या खर्च करते हो। उन्होंने कहा चलो इंसाफ की आँख से देखो फिर तुम को इख़्तियार है।

खैर एक साल के बाद वो वहाबी साथ आया देखा कि एक फकीर सोटा लिए ख्वाजा गरीब नवाज़ के रौजा शरीफ के पास ये सदा लगा रहा है “ख़्वाजा पाँच रूप्या लूँगा,एक घंटे के अन्दर लूँगा और एक ही शख़्स से लूँगा।”
जब उस वहाबी को खयाल आया कि अब बहुत वक़्त गुज़र गया एक घंटा हो गया होगा और अब तक किसी ने कुछ न दिया तो जेब से उस ने पाँच रूप्ये निकाल कर फकीर के हाथ पर रखे और कहा लो मियाँ तुम ख़्वाजा से माँग रहे हो भला ख़्वाजा क्या देंगे लो हम देते हैं।
फकीर ने वो रूप्ये तो जेब में रखे और चक्कर लगाकर ज़ोर से कहा:- “ख़्वाजा तारे बलिहारी जाऊँ।
दिलवाए भी तो कैसे ख़बीस मुन्किर से।”😀
(📓अलमलफूज़ मतबूआ मेरठ सफ्हा 47)
🤲🏻मौला तआला मुसलमानों को मुन्किरीने अज़मते अंबिया व औलिया की फितना सामानियों से महफूज़ रखे और सुल्तानुल हिन्द सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ की ताअलीमात और फुयूज़ो बरकात से बहरावर फरमाए आमीन।
ले ख़ाके दरे ख़्वाजा आँखों से लगा बेकल
बीनाई बताती है अक्सीर निराली है.!
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🌹बे इंतिहा सवाब कमाने का तरीक़ा🌹

जो कब्रस्तान में दाखिल हो कर ये कहे : ऐ अल्लाह ! ऐ गल जाने वाले जिस्मो और बोसीदा हड्डियों के रब ! जो दुन्या से ईमान की हालत में रुखसत हुए तू उन पर अपनी रहमत और मेरा सलाम पहुंचा दे। तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से ले कर इस वक़्त तक जितने मोमिन फौत हुए सब उस दुआ पढ़ने वाले के लिये दुआए मग्फिरत करेंगे।
हुज़ूर ﷺ का फरमाने शफ़ाअत निशान है : जो शख्स कब्रस्तान में दाखिल हुवा फिर उस ने सूरतुल फातिहा, सूरतुल इखलास और सुरह तकासुर पढ़ी फिर ये दुआ मांगी : या अल्लाह ! मेने जो कुछ कुरआन पढ़ा उसका सवाब इस कब्रस्तान के मोमिन मर्दों और मोमिन औरतो को पहुंचा। तो वो तमाम मोमिन क़यामत के रोज़ उस इसाले सवाब करने वाले के सिफारिशी होंगे।
✍🏽शरहु स्सुदुर् स.311

हदीशे पाक में है : जो 11 बार सूरतुल इखलास पढ़ कर इसका सवाब मुर्दो को पहुंचाए, तो मुर्दो की गिनती के बराबर उस इसाले सवाब करने वाले को सवाब मिलेगा।
✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183

 

 

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
☘️क्या मां का दूध बख्शवाना जरूरी है ?☘️

बहुत सारी जगहों में देखा गया है जब किसी की माँ का मौत का वक़्त करीब आता है या किसी का मां हज को जा रही होती है तो लोग उनके औलादों को कहते हैं कि मां से दूध बख्शवाना ज़रूरी है लिहाजा मौत से पहले दूध बख्शवा लो।

माँ के मौत के वक़्त घर वाले ग़म मे होते हैं तकलीफ़ मे होते हैं उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा होता है कि क्या करे क्या ना करे इसलिए लोग जो कहते हैं बेचारे परेशानी के आलम मे वही करते चले जाते हैं
और
आम ओ ख़ास लोगों को देखा गया कि वो उनके औलादों को जोर देते हुए कहते हैं दूध बख्शवा लो।

आइये जानते हैं मां से दूध बख्शवाना क्या ज़रूरी है ?
👇
बहरूल उलूम हुजूर मुफ्ती अब्दुल मन्नान साहब किबला अलेही रहमा तहरीर फरमाते हैं ⤵️

♻️ की शरीयत में दूध पिलाने वाली का दूध पीने वाले पर कोई मुतालबा नहीं इसलिए दूध बख्शवाना कोई शरई हुक्म नहीं इसके अलावा भी औलाद पर मां के बेशुमार हुक़ूक़ हैं

इंतकाल के बाद हुक़ूक़ की अदायगी की यही सूरत है कि उनके हक़ में दुआ ए खैर और उनके लिए ईसाले सवाब करे

📚 (फतावा बहरुल उलूम जिल्द 2 सफा 79)

🌸 👉 मां से दूध बख्शवाने को ज़रूरी समझना जाहिलाना ख्याल है क्योंकि अपने बच्चों को दूध पिलाना मां का हक़ है तो माएं दूध पिला कर अपना हक़ अदा करती हैं ना ये कि बच्चों पर कर्ज़ का बोझ डालती हैं

अलबत्ता बच्चा पर यह उनका एहसान है कि जिस की वजह से अल्लाह ने उनका मर्तबा बहुत ऊंचा कर दिया है
और औलाद को भी हुस्ने सुलूक का हुक्म दिया है

📚 (माह नामा कंज़ुल इमान दिल्ली सफा 18 मार्च 2015)

औलाद अगर सारी उमर मां के पाऊं धोकर पीती रहे तब भी मां का हक अदा नहीं कर पाएगी शरीयत में मां बाप का हक बहुत बड़ा है
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शबे बरात की फज़ीलत

🌙 नमाज़ और रोज़े का सवाब?

💫 फुक़्हा किराम फ़रमाते है जो शबे बारात की रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा

❣️हुज़ूर ﷺ सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा
(📚नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132)
(📚 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95)
_⚠️नॉट शबे बारात की रात नफ़्ल नमाज़ सिर्फ उनके लिए है जिनकी एक वक़्त की भी फ़र्ज़ नमाज़ न छूटी हो जिनके जिम्मे फ़र्ज़ नमाज़े हैं वो कज़ाए उमरी पढ़ें
इन शा अल्लाह नफल का सबाब भी मिल जायेगा अल्लाह की रहमत में कोई कमी नहीं है।
✨🌼✨🌼✨🌼✨🌼✨
होगी क़बूल सारे तलबगारों की फ़रियाद
बस दिल से पुकारों ये समाअत की रात है!

 

 

शबे बरात की फज़ीलत

🔥इनकी बख़्शिश न होगी

💖 हुज़ूर ﷺ सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के

⚠️फुक़्हा फ़रमाते हैं:- बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें
( 📚इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390)
( 📚बारह माह के फज़ायल,सफह 406)
✨🌼✨🌼✨🌼✨🌼✨
होगी क़बूल सारे तलबगारों की फ़रियाद
बस दिल से पुकारों ये समाअत की रात है!

 

शबे बरात की फज़ीलत

🌙शाबान के महीने के रोज़े

❣️ हुज़ूर ﷺ सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते, सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद ने हुज़ूर ﷺ सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं

💎 कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं

(📚 निसाई,जिल्द 3,सफह 269)
✨🌼✨🌼✨🌼✨🌼✨
होगी क़बूल सारे तलबगारों की फ़रियाद
बस दिल से पुकारों ये समाअत की रात है!

 

शबे बराअत के नवाफ़िल और सलात फातिमा तुज़् ज़ोहरा
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
इस रात में नवाफ़िल पढ़ने के मुताल्लिक मुख़्तलिफ़ रिवायतें हैं एक रिवायत यह है कि इस रात में सौ रकअत नफ़ल पढ़े। और हर रकअत में अलहम्द शरीफ़ के बाद दस दस बार कुल हुवल्ल्लाह शरीफ पढ़े। इस नमाज़ को सलातुल खैर कहते हैं जो शख्स यह नमाज़ पढ़ेगा तो अल्लाह तआला उसकी तरफ सत्तर दफ़ा करम फ़रमायेगा। और हर करम में उसकी सत्तर हाजतें पूरी फ़रमायेगा। अदना हाजत उसकी बख्शिश है।

एक रिवायत में है कि हुजूर अकदस ﷺ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो मेरा नियाज़ मंद उम्मती शब बराअत में दस रकअत नफ़ल इस तरह पढ़े कि हर रकअत में अलहदम्द शरीफ़ के बाद कुल हुवल्लाह शरीफ ग्यारह ग्यारह बार पढ़े तो उसके गुनाह माफ़ होंगे और उसकी उम्र में बरकत होगी।

सलात फातिमातुज़्ज़ोहरा
हजरत शैख अबुल कासिम सफ़ा से मंकूल है कि एक रोज मैने सैयदा फातिमा को ख्वाब में देखा बाद सलाम के मैंने अर्ज कि कि ऐ खातूने जन्नत आप किस चीज़ को ज़्यादा दोस्त रखती हैं कि रूहे मुबारक को बख्शूं।
फ़रमाया सैयदा कौनेन ने कि दोस्त रखती हूँ शाबान के महीने में
आठ रकअत एक सलाम चार कअदा (4 मर्तबा अत्तहियात में बैठना) के साथ और हर रकअत में अलहम्द के बाद कुल हुवल्लाह शरीफ ग्यारह बार पढे जो कोई यह नमाज़ माहे शाबान में पढ़े और मुझे इसका सवाब बख्शे तो ऐ अबुल कासिम मै हरगिज कदम न रखूगी जन्नत में जब तक कि उसकी शफाअत न कराऊं ,अक्सर सुलहा यह नमाज़ पंद्रहवीं शाबान को अदा फरमाते हैं।
👉🏻शाबान की 14 तारीख बाद नमाज़ मगरिब दो रकअत नमाज़ पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः हश्र की आखिरी तीन आयात एक मर्तबा और सूरः इखलास तीन तीन दफ़ा पढ़े इंशाअल्लाह तआला यह नमाज़ गुनाह की मग्फ़िरत के वास्ते बहुत अफ़जल है

चौदह शाबान कबल नमाज़ ईशा आठ रकअत नमाज़ चार सलाम से पढ़नी है हर रकअत में सूरः फातेहा के बाद सूरः इखलास पांच पाच मर्तबा पढ़े। यह नमाज़ भी बख्शिशे गुनाह में बहुत जूद असर है इंशाअल्लाह।

शाबान की पंद्रहवीं रात को गुस्ल करे अगर किसी तकलीफ के सबब गुस्ल न कर सके तो सिर्फ बा वुजू होकर दो रकअत तहयतुल वुजू पढ़े। हर रकअत में सूरः फातेहा के बाद आयतुल कुर्सी एक बार सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़नी है “यह नमाज़ बहुत अफ़जल है।
📓तीन नूरानी रातें-30

दीनी मेसेज पढ़ने के लिए हमारे ग्रुप से जुड़ें और अपने ईल्म में इज़ाफ़ा करके अपनी आखि़रत को बेहतर बनायें करे

 

आक़ा ﷺ का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
कल यानी मंगल के दिन मगरिब के बाद 6 नवाफ़िल

मामुलाते औलियाए किराम से है के मगरिब के फ़र्ज़ व सुन्नत वग़ैरा के बाद 6 रकअत नफ्ल 2-2 रकअत कर के अदा किये जाए।

पहली 2 रकअत इस की निय्यत से पढ़े “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से मुझे दराज़िये उम्र बिलखैर अता फ़रमा”

दूसरी 2 रकअत “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से बालाओं से मेरी हिफाज़त फ़रमा”

तीसरी 2 रकअतो “या अल्लाह इन 2 रकअत की बरकत से मुझे अपने सिवा किसी का मोहताज न कर”

इन 6 रकअतो में सूरतुल फातिहा के बाद जो चाहे वो सूरत पढ़ सकते है, बेहतर ये है के हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद 3 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये।
हर दो रकअत के बाद 1 बार यासीन शरीफ पढ़िये या 21 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये बल्कि हो सके तो दोनों ही पढ़ लीजिये।
हर बार यासीन शरीफ के बाद “दुआए निस्फ़े शाबान” भी पढ़िये।
✍🏽आक़ा का महीना, स.16

 

आक़ा ﷺ का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
कब्रस्तान की हाज़री पार्ट 02
कई मज़ाराते औलिया पर देखा गया है के ज़ाऐरीन की सहूलत की खातिर मुसलमानो की क़ब्रे तोड़ फोड़ कर के फर्श बना दिया जाता है, ऐसे फर्श पर लेटना, चलना, खड़ा होना, तिलावत और ज़िकरो अज़कार के लिये बैठना वग़ैरा हराम है, दूर ही से फातिहा पढ़ लीजिये।
ज़ियारते क़ब्र मय्यित के चेहरे के सामने खड़े हो कर, क़ब्र वाले की क़दमो की तरफ से जाए के उस की निगाह के सामने सिरहाने से न आए के उसे सर उठा कर देखना पड़े।
✍🏽फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.532

कब्रस्तान में इस तरह खड़े हो के किब्ले की तरफ पीठ और क़ब्र वालो के चेहरों की तरफ मुंह हो इस के बाद कहिये…
ऐ क़ब्र वालो ! तुम पर सलाम हो, अल्लाह हमारी और तुम्हारी मग्फिरत फरमाए, तुम हम से पहले आ गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले है।
✍🏽फतावा आलमगिरी, जी.5 स.350
✍🏽आक़ा का महीना, स.28

 

आक़ा ﷺ का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
कब्रस्तान की हाज़री
नबीये करीम ﷺ का फरमाने अज़ीम है : मेने तुम को ज़ियारते कबर से मना किया था, अब तुम क़ब्रो की ज़ियारत करो के वो दुन्या में बे रगबती का सबब है और आख़िरत की याद दिलाती है।
✍🏽सुनन इब्ने माजाह, जी.2 स.252 हदिष: 1571

वलियुल्लाह के मज़ार शरीफ या किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे तो
मुस्तहब ये है के पहले अपने मकान पर गैर मकरूह वक़्त में 2 रकअत नफ्ल पढ़े,
हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद एक बार आयतुल कुरसी और 3 बार सूरए इखलास पढ़े और इस नमाज़ का सवाब साहिबे क़ब्र को पहोचाए, अल्लाह तआला उस फौत शूदा बन्दे की क़ब्र में नूर पैदा करेगा और इस सवाब पोहचाने वाले शख्स को बहुत ज़्यादा सवाब अता फरमाएगा।
✍🏽फतवा आलमगिरी, जी.5 स.350

मज़ार शरीफ या क़ब्र की ज़्यारत के लिये जाते हुए रस्ते में फ़ुज़ूल बातो में मशगूल न हो। कब्रस्तान में आप उस रस्ते से जाए, जहां गुजिश्ता ज़माने में कभी भी मुसलमानो की क़ब्रे न थी, जो रास्ता नया बना हुवा हो उस पर न चले,
रद्दुल मुहतार में है कब्रस्तान में क़ब्रे पाट कर जो नया रास्ता निकाला गया हो उस पर चलना हराम है। बल्कि नऐ रस्ते का सिर्फ गुमान ग़ालिब हो तब भी उस पर चलना ना जाइज़ व गुनाह है।
✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183
✍🏽आक़ा का महीना, स.27

आक़ा ﷺ का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
महरूम लोग

शबे बरात बेहद अहम रात है, किसी सूरत से भी इसे गफलत में न गुज़ारा जाए, इस रात खुसुसिय्यत के साथ रहमतो की छमाछम बरसात होती है। इस मुबारक रात में अल्लाह “बनी क़ल्ब” की बकरियो के बालो से भी ज्यादा लोगो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है।
किताबो में लिखा है : क़बिलए बनी क़ल्ब क़बाइले अरब में सब से ज्यादा बकरिया पालता था।
आह ! कुछ बद नसीब ऐसे भी है जिन पर इस शबे बराअत यानि छुटकारा पाने की रात भी न बख्शे जाने की वईद है। हज़रते इमाम बेहकी शाफ़ेई अलैरहमा “फ़ज़ाइलुल अवक़ात” में नकल करते है : रसूले अकरम ﷺ का फरमाने इबरत निशान है : 6 आदमियो की इस रात भी बख्शीश नहीं होगी।
1 शराब का आदि
2 माँ बाप का ना फरमान
3 ज़ीना का आदि
4 कते तअल्लुक़ करने वाला
5 तस्वीर बनाने वाला
6 चुगल खोर इसी तरह काहिन, जादूगर, तकब्बुर के साथ पाजामा या तहबन्द टखनों के निचे लटकाने वाले और किसी मुसलमान से बुग्ज़ो किना रखने वाले पर भी इस रात मग्फिरत की सआदत से महरूमी की वईद है,
चुनान्चे तमाम मुसलमानो को चाहिये के इन गुनाहो में से अगर मआज़ल्लाह किसी गुनाह में मुलव्वस हो तो वो बिल खुसुस उन गुनाहो से और बिल उमुम हर गुनाह से शबे बराअत के आने से पहले बल्कि आज और अभी सच्ची तौबा कर ले, और अगर बन्दों की हक़ तलफिया की है तो तौबा के साथ उन की मुआफ़ी तलाफि की तरकीब फ़रमा ले।
✍🏽आक़ा का महीना, 11,12

 

आक़ा ﷺ का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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शबे बराअत और क़ब्रो की ज़ियारत
उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा फरमाती है : मेने एक रात सर वरे काएनात ﷺ को न देखा तो बकीए पाक (जन्नतुल बक़ी) में मुझे मिल गए, आप ने मुझसे फरमाया : क्या तुम्हे इस बात का डर था के अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारी हक़ तलफि करेंगे ?
मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ ! मेने ख़याल किया था के शायद आप अज़्वाजे मुतह्हरात में से किसी के पास तशरीफ ले गए होंगे।
तो फ़रमाया : बेशक अल्लाह तआला शाबान की 15वी रात आसमाने दुन्या पर तजल्ली फरमाता है, पस क़बिलए बनी क़ल्ब की बकरियो के बालो से भी ज्यादा गुनाहगारो को बख्श देता है।
✍🏽सुनन तिरमिजी, जी.2 स.183 हदिष : 739
✍🏽आक़ा का महीना, स. 20-21
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आक़ा का महीना
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
नाज़ुक फैसले
15 शाबानुल मुअज़्ज़्म की रात कितनी नाज़ुक है ! न जाने किस की क़िस्मत में क्या लिख दिया जाए ! बाज़ अवकात बन्दा गफलत में पड़ा रह जाता है और उस के बारे में कुछ का कुछ हो चूका होता है.
गुनीयातुत्तालिबिन में है : बहुत से कफ़न धूल कर तैयार रखे होते है मगर कफ़न पहनने वाले बाज़ारो में घूम फिर रहे होते है, काफी लोग ऐसे होते है की उन की क़ब्रे खुदी हुई तैय्यार होती है मगर उन में दफन होने वाले खुशियो में मस्त होते है, बाज़ लोग हस रहे होते है हालांके उन की मौत का वक़्त करीब आ चूका होता है. कई मकानात की तामिरात का काम पूरा हो गया होता है मगर साथ ही उन के मालिक की ज़िन्दगी का वक़्त भी पूरा हो चुका होता है.
✍🏽 गुनीयातुत्तालिबिन, जी.1 स. 348
✍🏽आक़ा का महीना, स. 8-9

शबे बरात में कब्रस्तान जाना सुन्नत है
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
उम्मुल मोमिनीन सैयदा हज़रत आयशा सिद्दीका फ़रमाती हैं कि एक रात महबूबे किबरिया ﷺ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मरे पास से अचानक चले गये। जब मुझे मालूम हुआ तो मैं आपकी तलाश में निकली। अचानक मैंने आपको जन्नतुल बकी में मौजूद पाया।
उस वक़्त आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था। जब आपने मुझे देखा तो फ़रमाया आयशा ! क्या तुझे यह खौफ़ हो गया था कि खुदा और उसके रसूल तुझ पर जुल्म करेंगे। तो मैंने अर्ज की कि मैंने यह ख्याल किया था कि शायद आप किसी अपनी दूसरी बीवी के पास तशरीफ ले गये हैं।
आप ﷺ ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला पंद्रहवीं शाबान की रात में लोगों की तौबा कुबूल करता हैं और इस रात में इस कद्र लोगों के गुनाह माफ फ़रमाता है कि उनकी तादाद बनी कलब के कबीला की बकरियों से ज़्यादा होती है।
📓तीन नूरानी रातें-25

 

 

🌹🌹 ●اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَاْمُ عَلَيْكَ يَاْ رَسُوْلَ اللّٰه(ﷺ)🌹🌹

इल्म और ओलामा

1️⃣ अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है👇

तर्जुमा—-ऐ ईमान वालो अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो और जो तुममें ऊलुल अम्र हैं,
📚पारा 5. रुकू 5)

हज़रत अल्लामा इमाम फ़ख़रुद्दीन राज़ी तहरीर फ़रमाते हैं👇

ऊलुल अम्र से मुराद ओलामा हैं असह अक़वाल हैं,
इसलिए के बादशाहों पर ओलामा की फ़रमाबरदारी, वाजिब है और उसका बर‌अक्स नहीं,

(यानी ओलामा बादशाहों की फ़रमाबरदारी नहीं करेंगे बल्के बादशाह ओलामा की फ़रमाबरदारी करेंगे)
📚तफ़्सीर ए कबीर जिल्द 1. सफ़ा 274)

हज़रत फ़क़ीह ए मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं👇

इस तफ़्सीर की रोशनी में आयत ए करीमा का तर्जुमा यूं हुआ के अल्लाह व रसूल की फ़रमाबरदारी करो और जो तुममें आलिम हैं उनकी फ़रमाबरदारी करो,
📗इल्म और उल्मा, सफ़ा 62–63)

2️⃣ और ख़ुदा ए तआला इरशाद फ़रमाता है👇

तर्जुमा—–अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं,
📚पारा 22. रुकू 16)

हज़रत अल्लामा इमाम राज़ी तहरीर फ़रमाते हैं के

आयते मुबारका में इस बात पर दलालत है के ओलामा जन्नती हैं और वो इसलिए के ओलामा ख़शियत वाले हैं और हर वो शख़्स जो ख़शियत वाला है जन्नती है, तो ओलामा जन्नती है,
और इस बात का सुबूत के ख़शियत वाले जन्नती हैं
अल्लाह तआला का ये क़ौल👇
جزاء هم، الخ،
ये आयत शुरु से आख़िर तक, का
तर्जुमा—–यानी उनका सिला उनके रब के पास रहने के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं,
वो लोग उनमें हमेशा रहेंगे,
अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी,
ये उसके लिए है जो अपने रब से डरे,
📚 पारा 30. सूरह लमयकुन,
📚 तफ़्सीरे कबीर जिल्द 1 सफ़ह 279)

🖊️आगे जारी रहेगा ان شاء الله

 

 

 

नबीए करीम ﷺ सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमायाः- क्या मैं तुम को बदतरीन चोर बताऊं ? सहाबए किराम ने अर्ज़ किया, हुजूर वह कौन हैं ? आप ने फ़रमाया, वह नमाज़ में चुराने वाले हैं ! अर्ज़ किया गया हुजूर नमाज़ में चोरी कैसे होती है ? आप ने फरमाया, वह रुकूअ और सज्दा सही तौर पर नहीं करेंगे !
🌸🌟🌸🌟🌸🌟🌸🌟🌸

✨मोमिन के लिये ज़रूरी है कि दूसरों को नेकी का हुक्म देते वक़्त खुद भी अमल करे

📜फरमाने नबवी है कि मैंने मेराज की रात ऐसे आदमी देखे जिन के होंट आग की कैंचियों से काटे जा रहे थे ! मैने जिब्रईल से पूछा यह कौन लोग हैं ? उन्होंने कहा यह आप की उम्मत के ख़तीब(ख़िताब करने वाले) हैं जो लोगों को नेकी का हुक्म करते हैं मगर अपने आप को भूल जाते हैं !
📖फ़रमाने इलाही है:- क्या तुम नेकी का लोगों को हुक्म देते हो और अपने नफ़्स को भूल जाते हो हालांकि तुम कुरआन पढ़ते हो, क्या तुम अक्ल नहीं रखते ?

🌟हज़रते जिबईल अलैहिस्सलाम हुजूर ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज की, ऐ अल्लाह के नबी! आज उस बिस्तर पर आराम न फरमायें जिस पर आप हमेशा आराम फरमाते हैं ! जब रात हुई तो कुरैश के जवान नबी ﷺ के घर के पास मंडराने लगे और उस वक्त का इन्तेज़ार करने लगे कि आप ﷺ बाहर आएं और वह एक साथ हमला कर दें ! हुजूर ﷺ ने हज़रते अली को अपने बिस्तर पर उस रात सुलाया और उन पर हरे रंग की एक चादर डाल दी जो बाद में हज़रते अली जुम्आ और ईदैन के मौकों पर ओढ़ा करते थे !

💎हज़रते अली पहले शख्स थे जिन्होंने जान बेच कर हुजूर ﷺ की हिफाज़त की थी ! चुनान्चे हज़रते अली ने इन अशआर मे अपने ख्यालात का इज़हार किया है::-

1. मैंने अपनी जान के बदले उस खैरे खल्क की हिफाज़त की जो अल्लाह की ज़मीन पर सबसे बेहतर है और जो हर तवाफ़ करने वाले, हजरे असवद को चूमने वाले से बेहतरीन है !

2. रसूलुल्लाह ﷺ को मक्का के कुरैश के फरेब का अन्देशा हुआ तो उनको रब्बे जुलजलाल ने उनके फरेब से बचा लिया

3. और रसूले खुदा ﷺ ने गार मे निहायत सुकून के साथ अल्लाह की हिफ़ाज़त में ! जबकि मैं मक्का के कुरैश के सामने सोया हुआ था और इस तरह मैं खुद को अपने कत्ल और कैद होने पर राजी किये हुए था !

(📚मुकाशतुल कुलुब)

 

 

बीवी और खाविंद की एक दूसरे पर बद-खुलक़ी पर सब्र करने का सवाब💎

🌹हुजूर ﷺ सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने इन तीनों बातों की उस वक़्त वसीयत फरमाई जबकि आपकी ज़बाने अकदस विसाल शरीफ़ के वक़्त लड़खड़ा रही थी और कलामे अनवर में हल्कापन पैदा हो चला था !

🌻आपने फरमाया नमाज़, नमाज़ और वह तुम्हारे हाथ जिनके मालिक हुए उन्हें वह तकलीफ़ न दो जिसके बरदाश्त करने की वह ताकत नहीं रखते ! औरतों के मुताल्लिक अल्लाह तआला से डरो, वह तुम्हारे हाथों में कैद हैं, यानी वह ऐसी कैदी हैं जिन्हें तुमने अल्लाह तआला की अमानत के तौर पर लिया है और अल्लाह के कलाम से उनकी शर्मगाहें तुम पर हलाल कर दी गई हैं !

✨हदीस::- हुजूर का इरशाद है कि जिस शख्स ने अपनी बीवी की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे मसाइब पर हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम के सब्र के अज़्र के बराबर अज़्र देगा और जिस औरत ने ख़ाविन्द की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे फ़िरऔन की बीवी आसिया के सवाब के मिस्ल सवाब अता फरमाएगा !

🤎बीवी से हुस्ने सुलूक यह नहीं कि उसकी तकालीफ़ को दूर किया जाए बल्कि हर ऐसी चीज़ को उससे दूर करना भी शामिल है जिससे तकलीफ पहुंचने का ख़दशा हो और उसके गुस्सा और नाराज़गी के वक़्त हिल्म का मुज़ाहिरा करना
📚(मुकाशिफ़्तुल कुलूब, सफ़ा 488)
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💎बीवी और खाविंद की एक दूसरे पर बद-खुलक़ी पर सब्र करने का सवाब💎

🌹हुजूर सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने इन तीनों बातों की उस वक़्त वसियत फरमाई जबकि आपकी ज़बाने अकदस विसाल शरीफ़ के वक़्त लड़खड़ा रही थी और कलामे अनवर में हल्कापन पैदा हो चला था !

🌻आपने फरमाया नमाज़, नमाज़ और वह तुम्हारे हाथ जिनके मालिक हुए उन्हें वह तकलीफ़ न दो जिसके बरदाश्त करने की वह ताकत नहीं रखते ! औरतों के मुताल्लिक अल्लाह तआला से डरो, वह तुम्हारे हाथों में कैद हैं, यानी वह ऐसी कैदी हैं जिन्हें तुमने अल्लाह तआला की अमानत के तौर पर लिया है और अल्लाह के कलाम से उनकी शर्मगाहें तुम पर हलाल कर दी गई हैं !

✨हदीस::- हुजूर का इरशाद है कि जिस शख्स ने अपनी बीवी की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे मसाइब पर हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम के सब्र के अज़्र के बराबर अज़्र देगा और जिस औरत ने ख़ाविन्द की बद-खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे फ़िरऔन की बीवी आसिया के सवाब के मिस्ल सवाब अता फरमाएगा !

🤎बीवी से हुस्ने सुलूक यह नहीं कि उसकी तकालीफ़ को दूर किया जाए बल्कि हर ऐसी चीज़ को उससे दूर करना भी शामिल है जिससे तकलीफ पहुंचने का ख़दशा हो और उसके गुस्सा और नाराज़गी के वक़्त हिल्म का मुज़ाहिरा करना और इस मुआमले में हुजूर अलैहिस्सलाम के उसवए हसना को मद्दे नज़र रखना ! हुजूर अलैहिस्सलाम की बाज़ अज़वाजे मुतहरात आपकी बात को(ब-तकाज़ाए कुदरत) (सूरतन) न भी मानतीं और उनमें से कोई एक, रात तक गुफ्तगू न किया करती थी मगर आप
उनसे हुस्ने सुलूक ही से पेश आया करते थे !
📚(मुकाशिफ़्तुल कुलूब, सफ़ा 488)
✨🌸✨🌸✨🌸✨🌸✨

 

 

 

✒️हर शख्स की उम्र मुक़र्रर है न उससे घट सकती है न बढ़ सकती है जब ज़िन्दगी का वक़्त पूरा हो जाता है तो हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम रूह निकालने के लिये आते हैं उस वक़्त मरने वाले को दायें बायें जहां तक नजर जाती है फरिश्ते ही फरिश्ते दिखाई देते हैं ।

✒️मुसलमान के पास रहमत के फरिश्ते होते हैं और काफ़िर के पास अज़ाब के। उस वक़्त काफ़िर को भी इस्लाम के सच्चे होने का यकीन हो जाता है लेकिन उस वक़्त का ईमान मोतबर नहीं क्योंकि ईमान तो अल्लाह व रसूल की बताई बातों पर बे देखे यकीन करने का नाम है और अब तो फरिश्तों को देख कर ईमान लाता है इस लिये ऐसे ईमान लाने से मुसलमान न होगा ।

✒️मुसलमान की रुह आसानी से निकाली जाती है और उसको रहमत के फरिश्ते इज्जत के साथ ले जाते हैं और काफ़िर की रुह बड़ी सख्ती से निकाली जाती है और उसको अजाब के फ़रिश्ते बड़ी जिल्लत से ले जाते हैं।

✒️मरने के बाद रुह किसी दूसरे बदन में जाकर फिर पैदा नहीं होती बल्कि कयामत आने तक आलमे बरजख में रहती है। यह ख्याल कि रूह किसी दूसरे बदन में चली जाती है चाहे आदमी का बदन हो या जानवर का या पेड़ पालू में यह गलत है इसका मानना कुफ्र है इसी को आवागवन और तनासुख कहते हैं ।

✒️मौत:- यह है कि रूह बदन से निकल जाये लेकिन निकल कर रुह मिट नहीं जाती बल्कि आलमे बरजख में रहती है और ईमान व अमल के एतेबार से हर रुह के लिये अलग जगह मुक़र्रर है कयामत आने तक वहीं रहेगी

✒️किसी की जगह अर्श के नीचे है और किसी की आला इल्लीयीन में और किसी की चाहे जमजम शरीफ में किसी की जगह उसकी कब्र पर है और काफ़िरों की रुह कैद रहती है किसी की चाहे जरहूत में किसी की सिज्जीन में किसी की उसके मरघट या क़ब्र पर

✒️बहर हाल रुह मरती या मिटती नहीं बल्कि बाकी रहती है और जिस हाल में भी हो और जहां कहीं भी हो अपने बदन से एक तरह का लगाव रखती है । बदन की तकलीफ़ से उसे भी तकलीफ़ होती है और बदन के आराम से आराम पाती है जो कोई क़ब्र पर आये उसे देखती पहचानती है और मुसलमान की निस्बत तो हदीस शरीफ में आया है कि जब मुसलमान मर जाता है तो उसकी रूह खोल दी जाती है जहां चाहे जायें हज़रत शाह अब्दुल अजीज लिखते है इहरा कुर्ब व बोदे मकानी यकसॉ अस्त यानी रुह के लिये कोई जगह दूर या नजदीक नहीं बल्कि सब जगह बराबर है

✒️जो यह माने कि मरने के बाद रुह मिट जाती है वह बद मज़हब है, मुर्दा कलाम भी करता है, इसकी बोली अवाम जिन और इन्सानों के सिवा हैवानात वगैरह सुनते भी है दफ़न के बाद कब्र मुर्दे को दबाती है। मोमिन को इस तरह जैसे मां बच्चे को और काफ़िर को इस तरह कि इघर की पसलिया उधर हो जाती है ।

 

रजब मुबारक़

माहे रजब बहुत सवाब व बरक़त वाला महीना है इस माह में बन्दों पर खुदा की रहमत बहाई जाती है
इस महीने को सब्बुन भी कहते है सब्बुन के मानी हैं बहाना
अल्लाह तआला इस माह में बन्दों को ऐसी अजमतें और सवाब अता फरमाता है जो न आंखों ने देखी और न कानों ने सुना है न किसी शख्स के दिल में उनका तसव्वुर आया!!

🔮रसूलुल्लाह ﷺ सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया “महीनों की गिनती जिस दिन से अल्लाह तआला ने ज़मीन व आसमान को पैदा फरमाया अल्लाह की किताब में बारह महीने हैं, इन बारह महीनों में से चार हुरमत वाले हैं, एक रजब है और उसके बाद तीन मुसलसल हैं यानी जीकदा,जील हिज्जा और मोहर्रम रजब अल्लाह का महीना है और शाबान मेरा है और रमजान मेरी उम्मत का महीना है।
(📚गुनियातुलतालिबीन सफ़ह 370)

 

 

✅️ अपने माँ बाप को गाली न दो ?

🌹हदीस:-रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: अपने माँ बाप को गाली देना बड़े गुनाहों में से है। सहाबा ने कहा: अल्लाह के रसूल ! भला कोई आदमी अपने माँ बाप को भी गाली देगा?
आपbﷺ ने फ़रमाया: हाँ! वो किसी के बाप को गाली देगा तो वो भी उसके बाप को गाली देगा और वो किसी की माँ को गाली देगा तो वो भी उस की माँ को गाली देगा।

🌷सुनन तिर्मिजी,हदीस नंबर:1902.

 

ख्वाजा ग़रीब नवाज़ – 1

ख्वाजा ए हिन्द वो दरबार है आला तेरा
कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा

नाम – हसन
लक़ब -मुईनुद्दीन, हिन्दल वली,गरीब नवाज़
वालिद – सय्यद गयासुद्दीन हसन
वालिदा – बीबी उम्मुल वरा (माहे नूर)
विलादत – 530 हिजरी,खुरासान
विसाल – 6 रजब 633 हिजरी,अजमेर शरीफ

वालिद की तरफ से आपका सिलसिलए नस्ब इस तरह है मुईनुद्दीन हसन बिन गयास उद्दीन बिन नजमुद्दीन बिन इब्राहीम बिन इदरीस बिन इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जाफर सादिक़ बिन इमाम बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना मौला अली

वालिदा की तरफ से आपका नस्ब नामा युं है बीबी उम्मुल वरा बिन्त सय्यद दाऊद बिन अब्दुल्लाह हम्बली बिन ज़ाहिद बिन मूसा बिन अब्दुल्लाह मखफी बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना मौला अली ,गोया कि आप हसनी हुसैनी सय्यद हैं

📕 तारीखुल औलिया,सफह 74

मसालेकस सालेकीन में हैं कि आप और हुज़ूर ग़ौसे पाक आपस में खाला ज़ाद भाई हैं और वहीं सिर्रूल अक़ताब की रिवायत है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ एक रिश्ते से हुज़ूर ग़ौसे पाक के मामू होते हैं

📕 मसालेकस सालेकीन,जिल्द 2,सफह 271
📕 सिर्रूल अक़ताब,सफह 107

आपकी वालिदा फरमाती हैं कि जिस दिन से मेरे शिकम में मुईनुद्दीन के जिस्म में रूह डाली गयी उस दिन से ये मामूल हो गया कि रोज़ाना आधी रात के बाद से सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती रहती,और जब आपकी विलादत हुई तो पूरा घर नूर से भर गया,आपके वालिद एक जय्यद आलिम थे आपकी इब्तेदाई तालीम घर पर ही हुई यहां तक कि 9 साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरान हिफ्ज़ कर लिया,मां का साया तो बचपन में ही उठ गया था और 15 साल की उम्र में वालिद का भी विसाल हो गया

📕 मीरुल आरेफीन,सफह 5

वालिद के तरके में एक पनचक्की और एक बाग़ आपको मिला जिससे आपकी गुज़र बसर होती थी,एक दिन उस बाग़ में दरवेश हज़रत इब्राहीम कन्दोज़ी आये गरीब नवाज़ ने उन्हें अंगूर का एक खोशा तोड़कर दिया,हज़रत इब्राहीम सरकार गरीब नवाज़ को देखकर समझ गए कि इन्हें बस एक रहनुमा की तलाश है जो आज एक बाग़ को सींच रहा है कल वो लाखों के ईमान की हिफाज़त करेगा,आपने फल का टुकड़ा चबाकर गरीब नवाज़ को दे दिया जैसे ही सरकार गरीब नवाज़ ने उसे खाया तो दिल की दुनिया ही बदल गयी,हज़रत इब्राहीम तो चले गए मगर दीन का जज़्बा ग़ालिब आ चुका था आपने बाग़ को बेचकर गरीबो में पैसा बांट दिया,खुरासान से समरक़न्द फिर बुखारा इराक पहुंचे और अपने इल्म की तकमील की

📕 अहसानुल मीर,सफह 134

आप एक मर्शिदे हक़ की तलाश में निकल पड़े और ईरान के निशापुर के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम हारूनाबाद है,जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी को देखा और उन्होंने आपको,मुर्शिदे बरहक़ ने देखते ही फरमाया कि आओ बेटा जल्दी करो मैं तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहा था अपना हिस्सा ले जाओ हालांकि इससे पहले दोनों की आपस में कभी कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी,खुद सरकार गरीब नवाज़ फरमाते हैं कि “जब मैं उस महफिल में पहुंचा तो बड़े बड़े मशायख बैठे हुए थे मैं भी वहीं जाकर बैठ गया तो हज़रत ने फरमाया कि 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ो मैंने पढ़ा फिर कहा किबला रु होकर सूरह बक़र की तिलावत करो मैंने की फिर फरमाया 60 मर्तबा सुब्हान अल्लाह कहो मैंने कहा फिर मुझे एक चोगा पहनाया और कलाह मेरे सर पर रखी और फरमाया कि 1000 बार सूरह इखलास पढ़ो मैंने पढ़ी फिर फरमाया कि हमारे मशायख के यहां फक़त एक दिन और रात का मुजाहदा होता है तो करो मैंने दिन और रात नमाज़ों इबादत में गुज़ारी,दूसरे रोज़ जब मैं हाज़िर हुआ क़दम बोसी की तो फरमाया कि ऊपर देखो क्या दिखता है मैंने देखा और कहा अर्शे मुअल्ला फिर फरमाया नीचे क्या दिखता है मैंने देखा और कहा तहतुस्सरा फरमाते हैं अभी 12000 बार सूरह इखलास और पढ़ो मैंने पढ़ी फिर पूछा कि अब क्या दिखता है मैंने कहा कि अब मेरे सामने 18000 आलम हैं फरमाते हैं कि अब तेरा काम हो गया” उसके बाद भी सरकार गरीब नवाज़ 20 साल तक अपने मुर्शिद के साथ ही रहें

📕 अनीसुल अरवाह,सफह 9

 

सीरते ख़्वाजा गरीब नवाज
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
🌹ख्वाजा ए हिन्द वो दरबार है आला तेरा
🌹कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा

आपकी 2 बीबियां है और 3 बेटे और 1 बेटी है..!

बीबी अमातुल्लाह से निकाह 590 हिजरी में हुआ आपके बतन से
⓵ ख्वाजा फकरुद्दीन
⓶ ख्वाजा हिसामुद्दीन
⓷ बीबी हाफीजा जमाल हुवे

दूसरी बीबी असमतुल्लाह से निकाह 620 हिजरी में हुआ और आपके बतन से
हजरत खवाजा जियाउद्दीन अबू सईद हुए

ख़्वाजा गरीब नवाज़ खवाजा उसमाने हारुनी के मुरीद और खलीफा है,

आप से हिन्दुस्तान में चिश्तिया सिलसिला जारी है..

आपके बहुत सारे मुरीदो ने हिन्दुस्तान में दीने इस्लाम की इशाअत का काम जारी रखा !
आप के 2 खलीफा मशहूर है :-
⓵ हजरत ख्वाज़ा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी (देहली)
⓶ हजरत ख्वाज़ा
हमीदुद्दीन नागौरी (नागौर)

इसके अलावा आपके सिलसिले (खलीफा के खलीफा) में बहुत सारे औलिया अल्लाह मशहूर है .
⓵ हजरत ख्वाज़ा फरीदुद्दीन गंजे शकर (पाक पट्टन पाकिस्तान)
⓶ हजरत ख्वाज़ा अलाउद्दीन साबिर कलियरी
⓷ हजरत ख्वाज़ा शम्सुद्दीन तुर्क पानीपती
⓸ हजरत ख्वाज़ा निजामुद्दीन औलिया (देहली),
⓹ हजरत ख्वाज़ा नसीरुद्दीन चिराग देहलवी
⓺ हजरत अमीर खुसरो (देहली)
⓻ हजरत बुरहानुद्दीन गरीब खुलदाबाद (महाराष्ट्र),
⓼ हजरत जलालुद्दीन फतेहबाद (महाराष्ट्र),
⓽ हजरत मोहम्मद हुसैनी गेसू दराज बंदा नवाज गुलबर्गा (कर्नाटक)
⓵⓪ हजरत सैय्यद अहमद बड़े पा लांसर (हैदराबाद)
⓵⓵ हजरत सिराजुद्दीन अकी सिराज (आइना ऐ हिन्द) (गौड़, वेस्ट बंगाल)
⓵⓶ हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी (किछौछा)
आपका विसाल 6 रजब 633 हिजरी (मार्च 16,1236) को 97 बरस की उम्र में हुआ..!

आपका मजार अजमेर (राजस्थान) में है विसाल के बाद भी आपका फैज़ और करामात जारी है, आपके मज़ार पर हाज़िर होने वालो और आप के वसीले से दुआ मांगने वालो को अल्लाह तआला हर नेक जायज मुराद अता फरमाता है..!
🤲🏻अल्लाह तआला से दुआ है कि रसूल सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के सदके में और ख्वाज़ा गरीब नवाज़ अता ऐ रसूल के सदके में हम सबको पक्का और सच्चा आशिके रसूल बनाये, और सबके ईमान की हिफाजत फरमाये, और सबको दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फरमाये..आमीन

 

सीरते ख़्वाजा गरीब नवाज
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

♦️हिन्दुस्तान में तशरीफ आवरी
हजरते सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ की हिन्दुस्तान में तशरीफ आवरी के सिलसिले में बेशुमार ,मुख़्तलिफ और मुतज़ाद रिवायतें बयान की गई हैं अलग अलग तारीख नवीसों और तज्किरा निगारों ने अपनी अपनी अलाहदा तहकीकात की रौशनी में मुख़्तलिफ आरा और ख़यालात का इज़हार किया है मसलन बाअज़ लोगों का कौल है कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ चार बार हिन्दुस्तान तशरीफ लाए पहली बार मुहर्रम 561 हि0 में और आखरी बार 587 हि0 में
📓बरिवायते तारीखे फरिश्ता व मुईनुल अरवाह

बाअज़ कहते हैं कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ 602 हि0 में हिन्दुस्तान तशरीफ लाए
📓सैरुल आरिफीन

एक ख़याल यह भी है कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ सुल्तान शहाबुद्दीन गौरी के लश्कर के साथ 587 हि0 में हिन्दुस्तान तशरीफ लाए और अजमेर में पृथ्वीराज के ज़वाल के बाद पहुँचे
📓तब्काते नासिरी ,मुन्तख़बुत्तवारीख , इन्डिया ऑफ औरंगज़ेब वगैरह

चौथा नज़रिया जो करीने केयास है वह यह है कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ 587 हि0 में पृथ्वीराज के दौरे इक्तेदार में तशरीफ लाए ।
📓मिफ्ताहुत्तवारीख,अकबरंनामा, तुजके जहाँगीरी ,सैरूल आलिया,अस्रारूल औलिया,फवाइदुस्सालिकीन,सैरुल अकताब,अख़्बारुल अख्यार और तज्किरतुल किराम वगैरह
📓सीरते ख़्वाजा-216

👉🏻दाता के मजार पर ख्वाजा की हाजिरी
इसी सफर में आप ने हज़रते दाता गन्ज बख्श सय्यिद अली हिजवेरी (लाहौर) के मज़ारे अक्दस पर न सिर्फ हाज़िरी दी बल्कि 40 दिन मुराकबा भी किया और हज़रते सय्यिदुना दाता गन्ज बख्श (लाहौर) का खुसूसी फैज़ हासिल किया।
📓मिरआतुल अस्रार,स 598
मज़ारे पुर अन्वार से रुख्सत होते वक्त दाता गन्ज बख़्श की अजमत व फैजान का बयान इस शे’र के जरीए किया :
गन्ज बख़्श फैज़े आलम ,मज़हरे नूरे खुदा.
नाकिसां रा पीरे कामिल ,कामिला रा रहनुमा.!
या’नी गन्ज बख्श दाता अली हिजवेरी का फैज़ सारे आलम पर जारी है और आप नूरे खुदा के मज़हर हैं ,आप का मकाम येह है कि राहे तरीक़त में जो नाक़िस हैं उन के लिये पीरे कामिल और जो खुद पीरे कामिल हैं उन के लिये भी राहनुमा हैं।

अगर अल्लाह वालों के हालाते ज़िन्दगी का मुशाहदा किया जाए तो येही बात सामने आती है कि इन की ज़िन्दगी के मा’मूलात और रोज़ मर्रह की आदात ,अहकामाते रब्बे जुल जलाल और सुन्नते रसूले बे मिसाल के ऐन मुताबिक़ होती हैं। ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाहि अलैहि की सारी ज़िन्दगी इसी का मज़हर है।
📓फैजाने ख्वाजा गरीब-12

सीरते ख़्वाजा गरीब नवाज
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اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
🌹ख्वाजये हिन्द वो दरबार है आला तेरा
🌹कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा

♦️करामात
एक बार आपके मुर्शिद ख्वाज़ा उस्मान हारुनी ने अपने सब मुरीदो को जमा करके कहा के मेने तुम्हे जो इल्म सिखाया है उससे कुछ करामात पेश करो…!
सब मुरीदो ने बारी बारी करामात से कोई चीज़ पेश की किसी ने सोना, किसी ने चांदी, किसी ने हीरे जवाहरात,तो किसी ने दीनारों दिरहम पेश किये,
ख्वाजा मोईनुद्दीन ने रोटी के टुकड़े पेश किये..!
सब मुरीद आप पर हंसने लगे.!
इतने में दरवाजे पर एक साइल ने आवाज़ दी के में कई दिनों से भूखा हूं मुझे खाने के लिए कुछ दे दो .! सब ने अपनी अपनी चीज़े उसको देनी चाही मगर उस साइल ने कहा के में इस सोने चांदी हीरे जवाहरात दीनारों दिरहम का क्या करुँ..?
मुझे तो खाने के लिए कुछ दे दो..! फिर ख्वाज़ा मोईनुद्दीन ने रोटी के टुकड़े उस साइल को दे दिए. उसने उसे लेकर आपको बहुत सारी दुआऐं दी.!
इसके बाद ख्वाज़ा उस्मान हारुनी ने फरमाया के ऐ मोईनुद्दीन तुम गरीब नवाज़ हो..

_🤲🏻अल्लाह तआला से दुआ है कि रसूल ﷺ सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के सदके में हम सबको पक्का और सच्चा आशिके रसूल बनाये,और सबके ईमान की हिफाजत फरमाये,और सबको दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फरमाये..

आलाहज़रत की नज़र में अजमेर शरीफ का अदब🌹

आलाहज़रत से एक सवाल किया गया कि अगर कोई अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर कहे तो क्या हुक्म है,मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं के

अगर वो अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर इसलिये कहता है कि सरकार गरीब नवाज़ की ज़ात कोई मुअज़्ज़म या मुतबर्रक नहीं
के अजमेर को अजमेर शरीफ कहा जाए जब तो गुमराह है
और अगर सिर्फ काहिली की वजह से ऐसा करता है तो फैज़ से महरूम है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 6,सफह 187

सीरते ख़्वाजा गरीब नवाज
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🌹ख़्वाजा ए हिन्द वो दरबार है आला तेरा
🌹कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा
♦️करामात
एक बार आप अपने साथियो के साथ एक दरख्त के नीचे बैठे थे,इतने में राजा के सिपाहियों ने आकर कहा के तुम सब यहाँ से खड़े हो जाओ..
ये जगह राजा के ऊँटो के बैठने की जगह है..!
आप ने फरमाया की ये ऊंट दूसरी कोई जगह पर भी तो बैठ सकते है.. “तो सिपाहियों ने कहा के नहीं ये ऊंट रोजाना यही पर बैठते है.!”

तो आप वहाँ से खड़े हो गए और फरमाया के ठीक है अब ये ऊंट यही पर बैठेंगे, और आप दूर चले गए..!
फिर कुछ वक़्त के बाद सिपाहियों ने ऊँटो को खड़ा करने की कोशिश की तो वो ऊंट वहाँ से खड़े ना हुवे, बहुत कोशिश करने के बाद नाकाम होकर वो सब राजा के दरबार में हाज़िर हुवे और सारा किस्सा बयान किया..! तो उस राजा ने कहा की तुम उस फकीर के पास जाओ और उससे माफ़ी मांगो..!
वो सिपाही आपको तलाश करते हुवे वहाँ पहुंचे और माफ़ी मांगी आपने फरमाया की जाओ तुम्हारे ऊँट खड़े हो गए है, सिपाहियों ने जब जाकर देखा तो ऊंट अपनी जगह से खड़े हो गए थे
इसके बाद आपने बहुत सारी करामते दिखाई जिसमे अना सागर को अपने कांसे में समा लेना और अजयपाल जादूगर के फेंके गए पत्थर को आसमान में ही रोक देना मशहूर है..!
आपने अपने रूहानी फैज़ और करामात से हिन्दुस्तान में इस्लाम की बुनियाद मजबूत की, बुलन्दी और वक़ार अता फरमाया
एक बार आप अना सागर की तरफ से गुजर रहे थे की आपने एक औरत के रोने की आवाज़ सुनी पहचानने पर पता चला की वो औरत बहुत गरीब थी और उसकी गाय मर गई थी,
आप उसके साथ उस गाय के पास गए और अल्लाह से दुआ की तो वो मरी हुई गाय जिन्दा हो गई ये देखकर वो औरत आप के कदमो में गिर गई

611 हिजरी में आप देहली तशरीफ़ ले गए आप 7 वीं सदी के मुजद्दिद भी है, आपने बहुत सारी किताबे भी लिखी है, जिस में अनीसुल अरवाह और दलाइलुल आरेफीन मशहूर है
🤲🏻अल्लाह तआला से दुआ है रसूल ﷺ सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के सदके में और ख्वाज़ा गरीब नवाज़ अता ऐ रसूल के सदके में हम सबको पक्का और सच्चा आशिके रसूल ﷺ बनाये, और सबके ईमान की हिफाजत फरमाये, और सबको दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फरमाये आमीन आमीन…
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खाने के आदाब
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

👉🏽लज़्ज़त सिर्फ ज़बान की जड़ तक है
👉🏽डट कर खाना सुन्नत नहीं, ज्यादा खाने को जी चाहे तो अपने आप को इस तरह समज़ाइये के सिर्फ ज़बान की नोक से जड़ तक लज़्ज़त रहती है, हल्क में पहोचते ही लज़्ज़त खत्म हो जाती है तो लम्हा भर के ज़ायके की खातिर सुन्नत का सवाब छोड़ना दानिश मंदी नहीं।

🔹नीज़ ज्यादा खाने से तबीअत बोज़ल हो जाती, इबादत में सुस्ती आती, मेदा खराब होता और बाज़ो को मोटापा आता है। कब्ज़, गैस शुगर और दिल वग़ैरा की बीमारियो का इम्कान बढ़ता है।

👉🏽फरागत के बाद पहले बिच की फिर शहादत की ऊँगली और आखिर में अंगूठा 3-3 बार चाटिये।

🔹सरकारे मदीना ﷺ खाने के बाद मुबारक उंगलियो को 3 मर्तबा चाटते।

बर्तन चाट लीजिये
बर्तन भी चाट लीजिये। हदीसे पाक में है, खाने के बाद जो शख्स बर्तन चाटता है तो वो बर्तन उसके लिये दुआ करता है और कहता है, अल्लाह तआला तुझे जहन्नम की आग से आज़ाद करे जिस तरह तूने मुझे शैतान से आज़ाद किया, और एक रिवायत में है के बर्तन उसके लिये इस्तिग़फ़ार करता है।
जिस बर्तन में खाया इस को चाटने के बाद पानी डालकर पी लीजिये इंशा अल्लाह عزوجل एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा।
◆ खाने के बाद दांतो का खिलाल करना सुन्नत है।
✍️फैज़ाने सुन्नत, सफा 317,318
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रजब की बहारें
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👉🏽मकाशफतुल कुलूब में है कि रजब के माना है : ताज़ीम करना।

👉🏽इसको अल असब (यानि सब से तेज़ बहाव) भी कहते है, इस लिये इस माहे मुबारक में तौबा करने वालो पर रहमत वालो पर रहमत का बहाव तेज़ हो जाता है और इबादत करने वालो पर क़बूलिय्यत के अन्वार का फैजान होता है।
👉🏽 इसे अल असम्म (यानि खूब बहरा) भी कहते है क्यू की इसमें जंगो जदल की आवाज़ बिलकुल सुनाई नहीं देती और इसे रजब भी कहा जाता है कि जन्नत की एक नहर का नाम “रजब” है जिस का पानी दूध से ज्यादा सफेद, शहद से ज्यादा मीठा और बर्फ से ज्यादा ठंडा है, इस नहर से वोही शख्स पानी पियेगा जो रजब के महीने में रोज़े रखेगा।

👉🏽गुन्यतूत्तालिबिन में है कि इस माह को “शहरे रजम” भी कहते है क्यू की इस में शैतानो को रजम यानी संग सार किया जाता है ताकि वो मुसलमानो को इज़ा न दे।
इस माह को असम्मा (खूब बहरा) भी कहते है क्यू की इस माह में किसी क़ौम पर अल्लाह तआला के अज़ाब के नाज़िल होने के बारे में नहीं सुना गया,
☝🏽अल्लाह عزوجل ने गुज़श्ता उम्मतों को हर महीने में अज़ाब दिया और इस माह में किसी क़ौम को अज़ाब न दिया।

📚रजब की बहारे, सफा 3

 

रजब के महीने में बीस रकअत नमाज़ पढ़ने का तरीका

📿 रसूलुल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया

💎 ऐ सलमान! रजब का चांद तुलू हो गया अगर इस महीने में कोई मोमिन मर्द या औरत बीस रकअत नमाज़ इस तरह पढ़े कि हर रकअत में सूरह फातिहा और सूरह इखलास तीन बार और सूरह अल काफिरुन तीन बार पढ़े तो अल्लाह तआला उसके तमाम गुनाहों को महव फरमा देता है और उसको इतना अज़्र अता फरमायेगा कि जैसे उसने पूरे महीने के रोजे रखे और उसका शुमार आईन्दा साल तक नमाज पढ़ने वालों में होगा ( यानी उसको साल भर की नमाज़ों का सवाब मिलेगा )
( 📚तिर्मिज़ी 4499 सहीह )

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