Hindi Islamic Stories

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Hindi Islamic Stories

 

 

♦ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ♦
اَلصَّـلٰوةُ وَالسَّــلَامُ عَلَيكَ یَا رَسُــوْلَ الله ﷺ

 

महमूद व अयाज़ और ककड़ी की काश

 

मशहूर आशिके रसूल, सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के पास कोई शख़्स ककड़ी ले कर हाज़िर हुवा। सुल्तान ने ककड़ी क़बूल फ़रमा ली और पेश करने वाले को इन्आम दिया।
फिर अपने हाथ से ककड़ी की एक काश तराश कर अपने मन्जूरे नज़र गुलाम अयाज़ को अता फ़रमाई। अयाज़ मज़े ले ले कर खा गया।
फिर सुल्तान ने दूसरी फांक काटी और खुद खाने लगे तो वोह इस क़दर कड़वी थी कि ज़बान पर रखना मुश्किल था। सुल्तान ने हैरत से अयाज़ की तरफ देखा और फ़रमाया :

अयाज़ ! इतनी कड़वी फांक तू कैसे खा गया ? वाह ! तेरे चेहरे पर तो ज़र्रा बराबर ना गवारी के असरात भी नुमूदार न हुवे.

अयाज़ ने अर्ज किया : आली जाह ! ककड़ी वाकेई बहुत कड़वी थी। मुंह में डाली तो अक्ल ने कहा : थूक दे।
मगर इश्क़ बोल उठा : अयाज़ ख़बरदार ! येह वोही हाथ हैं जिन से रोजाना मीठी चीजें खाता रहा है, अगर एक दिन कड़वी चीज़ मिल गई तो क्या हुवा ! इस को थूक देना आदाबे महब्बत के ख़िलाफ़ है लिहाजा इश्क़ की रहनुमाई पर मैं ककड़ी की कड़वी काश खा गया। ” ( रहबरे ज़िन्दगी, स . 167 )

प्यारे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने कि अपने आका की इस क़दर ने’मतें इस्ति माल करने वाला अगर अयाज़ की तरह सोच बना ले तो बे सब्री कभी क़रीब से भी नहीं गुज़र सकती।

नेकियां बरबाद होने से बचाइये स. 46

 

 

तीन पैसों के बदले 700 नमाजें

 

हदीस में है एक शख्स को जन्नत का हुक्म होगा वह जाना चाहेगा कि उसका हकदार खड़ा होगा
अर्ज करेगा ऐ रब मेरा हक मेरे इस भाई से दिला, हुक्म होगा कि उसकी नेकियाँ उसे देकर हक पूरा
करो, नेकियाँ ख़त्म हो जाएंगी और उसका हक बाकी रहेगा।
तीन पैसे जो किसी के ऊपर आते होंगे उनके बदले में 700 बा जमाअत नमाजें ली जाएंगी।

हक़दार फिर खड़ा होगा अर्ज़ करेगा ऐ रब मेरा हक़ मेरे इस भाई से दिलवा। हुक्म होगा उसकी बदियाँ (गुनाह) उस पर रख कर हक़ पूरा करो, उसकी बदियाँ (गुनाह) भी ख़त्म हो जाएंगी और अभी हक़ बाक़ी है, फिर खड़ा होगा और अर्ज़ करेगा ऐ रब मेरा हक़ मेरे इस भाई से दिलवा, इरशाद होगा उसकी तमाम नेकियां तुझे मिल गईं, तेरी तमाम बुराईयां उस पर रख दी गईं, अब उसके पास क्या है जो तू लेगा
अर्ज़ करेगा ऐ रब मेरे मेरा हक़ अभी बाकी है वह उससे दिलवा, तब फरिश्तों को हुक्म होगा कि जन्नत से एक मकान खूब आरास्ता करके अरसात में लाया जाए, सब लोग उसको निहायत शौक़ से देखने लगेंगे।
(फैजाने आलाहज़रत सफ़ह,181-182)

 

 

नमाज़ में चोरी

नबीए करीम ﷺ सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमायाः- क्या मैं तुम को बदतरीन चोर बताऊं ? सहाबए किराम ने अर्ज़ किया, हुजूर वह कौन हैं ? आप ने फ़रमाया, वह नमाज़ में चुराने वाले हैं ! अर्ज़ किया गया हुजूर नमाज़ में चोरी कैसे होती है ? आप ने फरमाया, वह रुकूअ और सज्दा सही तौर पर नहीं करेंगे !

मोमिन के लिये ज़रूरी है कि दूसरों को नेकी का हुक्म देते वक़्त खुद भी अमल करे

फरमाने नबवी है कि मैंने मेराज की रात ऐसे आदमी देखे जिन के होंट आग की कैंचियों से काटे जा रहे थे ! मैने जिब्रईल से पूछा यह कौन लोग हैं ? उन्होंने कहा यह आप की उम्मत के ख़तीब(ख़िताब करने वाले) हैं जो लोगों को नेकी का हुक्म करते हैं मगर अपने आप को भूल जाते हैं !
फ़रमाने इलाही है:- क्या तुम नेकी का लोगों को हुक्म देते हो और अपने नफ़्स को भूल जाते हो हालांकि तुम कुरआन पढ़ते हो, क्या तुम अक्ल नहीं रखते ?

हज़रते जिबईल अलैहिस्सलाम हुजूर ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज की, ऐ अल्लाह के नबी! आज उस बिस्तर पर आराम न फरमायें जिस पर आप हमेशा आराम फरमाते हैं ! जब रात हुई तो कुरैश के जवान नबी ﷺ के घर के पास मंडराने लगे और उस वक्त का इन्तेज़ार करने लगे कि आप ﷺ बाहर आएं और वह एक साथ हमला कर दें ! हुजूर ﷺ ने हज़रते अली को अपने बिस्तर पर उस रात सुलाया और उन पर हरे रंग की एक चादर डाल दी जो बाद में हज़रते अली जुम्आ और ईदैन के मौकों पर ओढ़ा करते थे !

हज़रते अली पहले शख्स थे जिन्होंने जान बेच कर हुजूर ﷺ की हिफाज़त की थी ! चुनान्चे हज़रते अली ने इन अशआर मे अपने ख्यालात का इज़हार किया है::-

1. मैंने अपनी जान के बदले उस खैरे खल्क की हिफाज़त की जो अल्लाह की ज़मीन पर सबसे बेहतर है और जो हर तवाफ़ करने वाले, हजरे असवद को चूमने वाले से बेहतरीन है !

2. रसूलुल्लाह ﷺ को मक्का के कुरैश के फरेब का अन्देशा हुआ तो उनको रब्बे जुलजलाल ने उनके फरेब से बचा लिया

3. और रसूले खुदा ﷺ ने गार मे निहायत सुकून के साथ अल्लाह की हिफ़ाज़त में ! जबकि मैं मक्का के कुरैश के सामने सोया हुआ था और इस तरह मैं खुद को अपने कत्ल और कैद होने पर राजी किये हुए था !

(मुकाशतुल कुलुब)

 

 

अजीब वाकिया

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बयान फरमाते हैं:-
भागलपुर से एक साहब हर साल अजमेर शरीफ हाजिर हुआ करते थे उस की एक वहाबी रईस से मुलाक़ात थी।
उसने कहा मियाँ ! हर साल कहाँ जाते हो। बेकार इतना रूप्या खर्च करते हो। उन्होंने कहा चलो इंसाफ की आँख से देखो फिर तुम को इख़्तियार है।

खैर एक साल के बाद वो वहाबी साथ आया देखा कि एक फकीर सोटा लिए ख्वाजा गरीब नवाज़ के रौजा शरीफ के पास ये सदा लगा रहा है “ख़्वाजा पाँच रूप्या लूँगा,एक घंटे के अन्दर लूँगा और एक ही शख़्स से लूँगा।”
जब उस वहाबी को खयाल आया कि अब बहुत वक़्त गुज़र गया एक घंटा हो गया होगा और अब तक किसी ने कुछ न दिया तो जेब से उस ने पाँच रूप्ये निकाल कर फकीर के हाथ पर रखे और कहा लो मियाँ तुम ख़्वाजा से माँग रहे हो भला ख़्वाजा क्या देंगे लो हम देते हैं।
फकीर ने वो रूप्ये तो जेब में रखे और चक्कर लगाकर ज़ोर से कहा:- “ख़्वाजा तारे बलिहारी जाऊँ।
दिलवाए भी तो कैसे ख़बीस मुन्किर से।”

 

(अलमलफूज़ मतबूआ मेरठ सफ्हा 47)
मौला तआला मुसलमानों को मुन्किरीने अज़मते अंबिया व औलिया की फितना सामानियों से महफूज़ रखे और सुल्तानुल हिन्द सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ की ताअलीमात और फुयूज़ो बरकात से बहरावर फरमाए आमीन।
ले ख़ाके दरे ख़्वाजा आँखों से लगा बेकल
बीनाई बताती है अक्सीर निराली है.!

 

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